"आख़िर क्यों "
सिर्फ़ ख़ुद की ही बातें करती हूँ...
क्या ख़ुद में इतनी सिमटी हुई हूँ ?
भाड़ में जाये लोग, बस अपनी सोचो...
क्या इतनी मतलबी हो चुकी हूँ ?
जो मैं कहूँ वो सच, बाकी सब कुछ गलत...
क्यों ख़ुद के अलावा कुछ और सच्चा लगता नहीं ?
हाँ ! पता है तुम सच कहते हो, पर ....
क्यों भरोसा किसी पर कर पाती नहीं ?
तुम ?! तुम ये बोल रहे हो ? तुमने आख़िर किया ही क्या है ज़िन्दगी में !!
क्यों न चाहते हुए भी किसी के अहम् को ठेस पहुँचा जाती हूँ ?
तुम्हारे बोलने से मैं कैसे मान लूँ , मैं अनपढ़ नहीं हूँ !!
क्यों बहस कर के अपनी ही बात पर अड़ी रह जाती हूँ ?
अपनों के लिए क्या नहीं किया, बदले में क्या मिला ...
निराशाओं को अपनाकर क्यों दिल को फ़ुसला पाती नहीं ?
ज़िन्दगी तो कर्म से ही जीती जा सकती है !
जब इतना है भरोसा, तो फिर मेहनत क्यों करती नहीं ?
"मैं ये करना चाहती हूँ, मैं वो भी करना चाहती हूँ..."
इतना कुछ सोच कर क्यों कुछ कर पाती नहीं ?
देखो ! मुझे झूठ से सख्त नफ़रत है..
झूठ सुन पाती नहीं, पर कभी ख़ुद ही बोल जाती हूँ ?
मैंने तुमको ही चाहा है, पर काश तुम कुछ वैसे होते ...
दिल लगाती हूँ, पर क्यों बहक जाती हूँ ?
प्यार-तकरार , रूठना-मनाना तो होता ही रहता है ...
जिनको इतना चाहती हूँ , क्यों बिन बात लड़ जाती हूँ ?
"क़ाश मैंने समय रहते ये सब कर लिया होता, कितना अच्छा होता... "
ख्वाहिशें पूरी करने के लिए, क्यों कदम बढ़ाती नहीं ?
हाँ ! क़ाबिलियत है मुझमे, कर सकती हूँ मैं ....
आत्मविश्वास की कमी नहीं, पर क्यों पीछे रह जाती हूँ ?
दिन भर बैठी, गुमसुम सी, जाने किस सोच में डूबी रहती हूँ ...
ज़िन्दगी की उलझनों में, क्यों फंस के रह जाती हूँ ?
"आख़िर करना क्या चाहती हो तुम ज़िन्दगी में ?", माँ हर रोज़ पूछा करती है
मैं तो आख़िर "मैं" ही हूँ , क्यों खुद को समझ नहीं पाती हूँ ?
ऐसी कई सवालों से भागती-छुपती, बेचारी मैं
इन सयानों के भीड़ में कहीं गुम हो गयी हूँ !!
"bheed me chhup ke logo se bachna abhi yhi zindagi hai meri,
ReplyDeleteaankho me samete hue is dard ko sehana ab yahi zindagi hai meri,
vo raste jin per log mil jate hai aksar,
un rasto se hat kar gujarna ab yehi zindagi hai meri...." written by me...:)
This is nice.:)
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